मृत्यु के बाद हँसता-खेलता परिवार विभाजित न हो और सदस्यों में आपसी वैमनस्य न हो, इसके लिए व्यक्ति द्वारा 'वसीयत' अपने जीते-जी ही कर दी जाती है। 'वसीयत' के माधयम से अपनी भौतिक धन-सम्पत्ति को अपनी इच्छानुसार परिजनों में बाँटा जा सकता है।
यह एक कानूनी परिपत्र होता है, जिसे काटा नहीं जा सकता। अपने जीवनकाल में अपनी वसीयत तैयार करवा कर मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों में सम्पत्ति को लेकर उठने वाले विवाद को बचाया जा सकता है। 'वसीयत' करते समय किन महत्वपूर्ण बातों का विशेष धयान रखना होता है, इसे जानना आवश्यक होता है।
'वसीयत' किसी भी दूसरे दस्तावेज से अधिक मान्य होती है। आपने अपने बच्चों को 'नामिनी' (उत्तराधिकारी) के रुप में अपने मकान , बैंक, बिमा, एकाऊंट या अन्य शेयर्स में नामित किया होगा, लेकिन 'नामिनी' (उत्तराधिकारी) स्वामी नहीं होता। 'नामिनी' (उत्तराधिकारी) तभी स्वामी माना जाता है, जबकि उसके विषय में वसीयतनामा में भी लिखा गया हो। अगर कोई व्यक्ति 'नामिनी' (उत्तराधिकारी) नहीं भी है, किन्तु उसे वसीयत में नामित कर दिया है, तो अंतिम स्वामी वही माना जाता है।
अगर वसीयत में अपने उत्तराधिकारी का उल्लेख नहीं किया गया हो, या बगैर वसीयत किए ही मृत्यु हो जाती है, तब संपत्ति के बँटवारे के संबंध में धर्म विधि प्रभावी होती है। अगर आप हिन्दू हैं तो संपत्ति, पत्नी, बच्चें और माँ के बीच बराबर रुप में बाँट दी जाएगी। अगर आप अपना मकान पुत्र के लिए छोड़ना चाहते है, तो इसका उल्लेख वसीयतनामा में अवश्य करना चाहिए। वसीयत में यह जोड़ना न भूलें कि आपकी पत्नी (अगर महिला हैंम तो पति) उसमें जीवनपर्यंत रहेगी। इस प्रकार आपको विश्वास बना रहता है कि आपकी संपत्ति आपके पसंदीदा उत्तराधिकारी के पास ही जाएगी।
आपने संपत्ति के लेन-देन या निवेश हेतु बच्चों को पावर आफ एटार्नी (मुख्तारी अधिकार) बना दिया है। तो यह तभी तक वैध होगा, जब तक आप जीवित हैं। मृत्यु के बाद यह अधिकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
बिना गवाह की वसीयतनामा कभी वैध (legal) नहीं होती। इसमें दो गवाहों की जरुरत होती है, न सिर्फ उस समय, जब इसे लिखा जा रहा है, बल्कि उस समय भी गवाह की जरुरत पड़ती है, जब आप उस पर दस्तखत कर रहे हो।
हर गवाह को अपना स्पष्ट नाम, पता व व्यवसाय बताते हुए वसीयत पर हस्ताक्षर करना होता है। गवाह उन्हें ही बनाना चाहिए, बालिग (major) हों या हितबद्ध वसीयत में भागीदार नहीं हों। गवाहों का हस्ताक्षर वसीयत की मूल प्रति के साथ ही इसकी अन्य प्रतिलिपियों पर भी होना आवश्यक होता है।
अगर आप यह चाहते हैं कि वसीयत की विषय-वस्तु को आपकी मौत तक गुप्त रखा जाय तो इसके लिए गवाहों से अनुरोध ही किया जा सकता है कि वे वसीयत नामा की ' विषय-वस्तु' न पढ़े, किन्तु कोई भी गवाह कानूनी तौर पर ऐसा करने को बाधय नहीं होते।
यह आवश्यक नहीं है की वसीयत स्टैम्प पेपर पर ही लिखी जाय। कागज का एक साधारण टुकड़ा भी इसके लिए पर्याप्त होता है, हालाँकि इसके अपवाद भी हैं। अगर आप किसी ऐसे सशस्त्र बल के सदस्य हैं, जो कि एक्शन में अथवा जहाज में हैं तो इन स्थितियों में दो गवाहों की मौजूदगी में आप मौखिक वसीयत भी कर सकते हैं।
लिखित वसीयत का यह मतलब नहीं होता कि आप द्वारा ही हाथ से लिखा गया हो। इसे टाइप करवाया जा सकता है। वसीयत हमेशा उसी भाषा में तैयार करनी चाहिए, जिस भाषा को वसीयतवाला अच्छी तरह पढ़ या समझ सकता है।
अगर किसी समय आप अपनी वसीयत में कोई छोटा-मोटा परिवर्तन करना चाहते हैं तो कर सकते हैं बशर्ते आपको यह बताना होगा कि आप यह परिवर्तन क्यों कर रहें हैं। यहाँ आपको फिर दो गवाहों की ज़रुरत पड़ेगी। ये गवाह पहले वाले गवाह ही हों, यह जरुरी नहीं। अगर वसीयत में ढेर सारे परिवर्तनहों तो आपके पास नयी वसीयत करने का विकल्प रहता है। आप जीवन में भले ही पाँच बार भी वसीयत किये हों, लेकिन मान्यता अंतिम वसीयत की ही होती है।
वस्तुत: आपको हर दो वर्षो बाद अपनी वसीयत के रिव्यू (review) पुनरावलोकनों के बारे में सोचना होगा। यह तब आवश्यक हो जाता है, जब किसी व्यक्ति को आप पहली बार अपनी वसीयत में नामित नहीं करते और आप उसके लिए कुछ छोड़ना चाहते हैं।
वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य नहीं होता। हालाँकि, पंजीकृत वसीयत पर कोर्ट ज्यादा तरजीह (preference) देता है। पंजीकृत वसीयत में एक समस्या होती है। यदि इस वसीयत में कोई परिवर्तन करना चाहें, तो एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुज़रना पड़ता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए आपकी वसीयत की विषय वस्तु को अमल में लाया जाय, आप कम से कम दो निष्पादकों (executers) की नियुक्ति कर सकते हैं। यह कानून उचित भी है। अपनी वसीयत की प्रतिलिपियाँ तैयार करें । एक पने पास सुरक्षित रख लें तथा एक-एक अपने वकील एव।न प्रत्येक निष्पादक के पास रख दें। वसीयत लिखने के बाद भी परिवार के व्यक्ति उस पर विवाद उठा सकते हैं। जो सदस्य महसूस करते हैं कि उन्हें आपकी संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला है। या इच्छनुसार वस्तु नहीं मिली है, वे वसीयत को इस आधार पर विवाद के घेरे में ला सकते हैं कि , वसीयत बल-प्रयोग द्वारा लिखायी गयी है या इसे करते समय वसीयतकर्ता की दिमागी दशा ठीक नहीं थी या इसे लिखते वक्त वसीयत करने वाला नशे की हालत में था। जाली हस्ताक्षर के आधार पर भी वसीयत को अवैध साबित किया जा सकता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होता। ऐसा अरोप लगाने वालों को साक्ष्यों के आधार पर अपनी बात साबित करनी होती है। ऐसे मामलों में अदालत गवाहों का परीक्षण करती है।
आर॰ स्वामीनाथन
सेवानिवृत लाईसियन, मयिलाडुतुरै, तमिलाडु
Tuesday, February 16, 2010
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1 comment:
राजेश जी वांछित जानकारी इस पोस्ट से प्राप्त हुई, आभार।
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